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सामाजिक विज्ञान
(इतिहास)
अध्याय-1: क्या, कब, कहाँ और कैसे
अतीत
अतीत का अर्थ होता है “बीता हुआ समय” या दूसरी भाषा में कहे तो बीता हुआ समय को ही अतीत कहते है
देश का नाम
‘इण्डिया ‘ शब्द इंडस से निकला है जिसे संस्कृत में सिंधु कहा जाता है ईरान और यूनान वासियों ने सिंधु को हिंडोस अथवा इंडोस कहा और इस नदी के पूर्व के भूमि प्रदेश को इण्डिया कहा।
भारत नाम का प्रयोग उत्तर-पश्चिम में रहने वाले लोगो के एक समूह के लिए किया जाता जाता था इसका वर्णन ऋग्वेद में भी मिलता है। प्राचीनकाल से भारतभूमि के अलग-अलग नाम रहे हैं मसलन जम्बूद्वीप, भारतखण्ड, हिमवर्ष, अजनाभवर्ष, भारतवर्ष, आर्यावर्त, हिन्द, हिन्दुस्तान और इंडिया। मगर इनमें भारत सबसे ज़्यादा लोकमान्य और प्रचलित रहा है।
अतीत के बारे में कैसे जानें
अतीत के बारे में बहुत कुछ जाना जा सकता है - जैसे लोग क्या खाते थे, कैसे कपड़े पहनते थे, किस तरह के घरों में रहते थे?
लोग कहाँ रहते थे
आधुनिक खोजों से ज्ञात हुआ है कि लाखों वर्ष पूर्व इस पृथ्वी पर मानव का जन्म हुआ था। पहले मनुष्य चार पैरों पर चलता था और जंगलों में रहता था। वह पेड़ों की जड़े ,पत्तियाँ, फल-फूल इत्यादि खाता था। कुछ छोटे जानवरों को मारकर उनका कच्चा मांस खाता था। वस्त्र नहीं पहनता था व घूमता रहता था।
यह वानर जैसा मानव खाने की तलाश इधर-उधर दिन भर भटकता था, लेकिन रात होने पर जानवरों से सुरक्षा व ठंड व बरसात से बचने के लिए गुफा जैसे स्थान मिलने पर उसमें रहने लगा।
लेकिन वह अधिकांशतः पेड़ों पर चढ़कर ही रहता था और इस तरह रात में जंगली जानवरों से अपनी सुरक्षा करता था। संभवतः जब उसने ऊँचाई पर लगे पेड़ों के फलों को देखा होगा तब उनको तोड़ने के लिए वह धीरे-धीरे अपने शरीर को संतुलित करते हुए चार बजाए दो पैरों का उपयोग करने लगा होगा। इस प्रकार उसके दो हाथ स्वतंत्र हो गए होंगे जिनका उपयोग वह धीरे-धीरे किसी चीज को खोजने, पकड़ने व उठाने में करने लगा होगा और इस तरह वह दो पैरों का उपयोग चलने एवं दो हाथों का उपयोग काम करन के लिए करने लगा होगा।
लोग क्या खाते थे
प्राचीन भारत में भोजन मूल रूप से प्राचीन अतीत से भारतीय सभ्यता के सांस्कृतिक विकास को दर्शाता है। खानाबदोश निवासियों के मुख्य खाद्य पदार्थ फल, जंगली जामुन, मांस, मछली आदि थे।
सभ्यता के आगमन के साथ, लोग बस गए और खेती करना शुरू कर दिया। इससे खाद्य फसलों, दालों आदि की खोज हुई।
प्राचीन भारत में भोजन की खेती उपजाऊ नदी घाटियों में की जाती थी।
चावल उनका मुख्य भोजन था जिसे पकी हुई दाल, सब्जियों और मांस के साथ खाया जाता था। गेहूँ का उपयोग चपटी रोटी बनाने के लिए किया जाता था जिसे “चपाती” के नाम से जाना जाता है।
जटिल धार्मिक अनुष्ठानों के केंद्र में आने के साथ,पशु बलि चरम पर थी और अधिक से अधिक लोग शाकाहारी बन गए। प्राचीन काल में दूध और दुग्ध उत्पादों का बहुत उपयोग हुआ।
चावल दही के साथ खाया जाता था। गायों का सम्मान और पूजा की जाती थी।
भारत में अधिकांश लोग शाकाहारी हो गए और मांस का सेवन बहुत कम किया जाता था। भारत में कई मसालों की खेती की जाती थी और सुगंध और स्वाद के लिए खाना पकाने में इस्तेमाल किया जाता था। भारत मसालों की खेती में फला-फूला और उनमें से कई को बाद में विदेशों में निर्यात किया गया। प्राचीन भारत में भोजन को विभिन्न युगों में विभाजित किया जा सकता है जिसमें सिंधु घाटी सभ्यता में भोजन, वैदिक काल में भोजन, मौर्य काल में भोजन, गुप्त काल में भोजन, गुप्त काल में भोजन शामिल है।
सिंधु घाटी सभ्यता के भीतर प्राचीन भारत में भोजन काफी विकसित हुआ जिसने गेहूं, जौ, तिल और ब्रासिका का उपयोग किया। इसके साथ ही मनुष्य ने भैंसों, बकरियों और भेड़ों को वश में करना सीख लिया था जो खेती के लिए उपयोगी हो गए थे। शुरुआत में वे शायद मुख्य रूप से गेहूं और चावल और छोले और दाल खाते थे। भारतीय रसोइयों ने कई मध्य एशियाई जड़ी-बूटियों और मसालों का इस्तेमाल किया – दालचीनी, जीरा, धनिया, सौंफ और सौंफ। भारतीय लोग गन्ने को चबाने का भी आनंद लेते थे।
कैसे कपड़े पहनते थे
वास्तव में यह निर्धारित करना कि जब इंसानों ने कपड़े पहनना शुरू किया, बहुत मुश्किल है, क्योंकि शुरुआती कपड़े जानवरों की खाल जैसी चीजें होती थी। जो तेजी से खराब हो जाता था। इसलिए, बहुत कम पुरातात्विक साक्ष्य हैं जिनका उपयोग उस तिथि को निर्धारित करने के लिए किया जा सकता है जिसे कपड़े पहना जाने लगे।
कपड़ों का इतिहास सिंधु घाटी सभ्यता जितनी पुरानी है। मानवों ने आज से एक लाख 70 हजार साल पहले जरूरत महसूस की कि उन्हें तन ढंकने के लिए किसी चीज की जरूरत है। यह वह वक्त था जब आदिमानव के शरीर से बाल कम हो रहे थे। दक्षिण अफ्रीका में रहने वाले आदिमानव को लंबे समय तक तन ढंकने की जरूरत महसूस नहीं हुई। इसके बाहर के देश जैसे यूरोप, अमेरिका आदि में रहने वाले निएंडरथल मानवों को सर्दी का सामना करना पड़ता था।
चूंकि शरीर पर से बाल कम हो रहे थे इसलिए उन्होंने जानवरों की खाल लपेटना शुरू किया। इससे उनका शरीर गर्म रहता था। कनाडा की साइमन फ्रेज़र बर्नबी यूनिवर्सिटी में हुए एक शोध में सामने आया है कि हमारे पुरखे ऐसे जानवरों का शिकार करते थे जिनकी खाल मोटी हो जानवर का गोश्त खाने के काम आता था, और खाल को काटकर, सुखाकर उसे शरीर पर लपेटने के लिए इस्तेमाल किया जाता था।
पाण्डुलिपि –
ये पुस्तकें हाथ से लिखी होती थी (ताड के पत्तो व भुर्ज पेड़ का छाल से निर्मित) यह भोजपत्र पर लिखी जाती थी।
अंग्रेजी में इसके लिए ‘ मैन्यूसिक्रप्ट ” शब्द लैटिन शब्द ” मेनू ” जिसका अर्थ हाथ है – इन पाण्डुलिपि में, धार्मिक मान्यता, व्यवहार, राजाओ के जीवन, औषधियो तथा विज्ञान आदि सभी प्रकार के विषय की चर्चा मिलती है।
यह संकृत प्राकृत व तमिल भाषा में लिखे है – प्राकृत आम लोगो की भाषा थी।
अभिलेख :–
किसी विशेष उद्देश्य से किसी ठोस वस्तु पर उत्कीर्ण लेख को अभिलेख कहा जाता है. अभिलेख आदेश, निर्देश, इतिहास या किसी वस्तु का उल्लेख भी हो सकते हैं. अतीत के बारे में जानने का एक ओर महत्वपूर्ण स्रोत अभिलेख है यह कठोर सतह पर उत्क्रीर्ण किए जाते है। प्राचीन काल में राजा महाराजा अपने इतिहास को हमेशा के लिए जीवित रखने के लिए अभिलेख बनवाते थे. यह अभिलेख पत्थरों या धातुओं जैसे ठोस वस्तुओं पर बनते थे. जिससे कारण यह अभिलेख आज भी हमें विभिन्न खुदाई और शोध से प्राप्त होते हैं.
अभिलेखों को लिखने के लिए उपयोगी सामग्री –
अभिलेखों में पत्थर, धातु, मिट्टी की तख्ती, ईंट, काष्ठ आदि का उपयोग किया जाता है। अभिलेखों पर अक्षरों की खुदाई के लिए छेनी, नुकीली किले, हथौङा, लौहशलाका जैसी नुकीली वस्तु का उपयोग किया जता था।
अभिलेखों के प्रकार-
निजी अभिलेख
सरकारी अभिलेख
निजी अभिलेख –
ऐसे अभिलेख जिन्हें व्यक्तिगत स्तर पर खुदवाया गया है। सबसे प्राचीन निजी अभिलेख बेसनगर (विदिशा) का है। यह अभिलेख एंटीयालकिट्स के राजदूत हेलियोडोरस द्वारा खुदवाया गया है जो राजा भागभद्र के दरबार में आया था। यह वैष्णव धर्म का सबसे प्राचीन अभिलेख भी है।
सरकारी अभिलेख –
ऐसे अभिलेख जो शासक द्वारा जनसामान्य को सूचना देने के लिए स्थापित किए जाते थे। ऐसे अभिलेख पवित्र-स्थानों, चैराहों अथवा अन्य भीङ-भाङ वाले स्थानों पर लगाए जाते थे।
पुरातत्वविद :-
वे व्यक्ति जो अतीत में बनी वस्तुओं का अध्याय करते है जिस युक्ति से धरती में दबे इतिहास के पन्नो को उजागर किया जाता है उसे पुरातत्व कहा जाता है , पुरातत्व सुस्पष्ट भौतिक अवशेषों के अध्य्ययन का विषय है यह निरंतर भौतिक पर्यावरण और प्राकृतिक पर्यावरण में होने वाले बदलावों का अध्ययन करता है यह पृत्वी के नीचे दबी वस्तुओं का अध्ययन कर किसी संस्कृति या सभ्यता के विषय में तथ्य उजागर करता है। पृथ्वी पर अनेकानेक परिवर्तन होते रहते हैं और धीरे धीरे ये परिवर्तन मानव के अतीत बन जाते है और पृत्वी की सतह में दबकर ये आधुनिक समाज से दूर हो जाते हैं इन अतीतों की पड़ताल करना ही पुरातत्व का कार्य है।
पुरातत्व मुख्य रूप से खुदाई आदि से प्राप्त वस्तुओं की पड़ताल करता है। पुरातत्वविद उत्खनन से प्राप्त अवशेषों की जांच करते हैं और उनपर अपनी राय रखते हैं। किसी राजा के साम्राज्य , किसी युद्धस्थल , किसी टीले आदि स्थलों और जंगलों आदि से पुरातत्वविद उत्खनन कार्य से वहाँ प्राप्त औजारों , अभिलेखों हड्डियों , बर्तन , मूर्तियां , लिखित अभिलेख आदि से प्राचीन कालीन मानव के रहन सहन के विषय मे जानकारी प्राप्त करते हैं। जैसे – पत्थर व ईट से बनी इमारते, अवशेष, चित्र, मुर्तिया इत्यादि।
इतिहासकार :-
इतिहासकार वह है जो इतिहास लिखे। एक इतिहासकार एक ऐसा व्यक्ति है जो अतीत के बारे में अध्ययन और लिखता है, और इसे उस पर एक अधिकार के रूप में माना जाता है। इतिहासकार, मानव जाति से संबंधित पिछले घटनाओं की निरंतर, व्यवस्थित कथा और अनुसंधान से चिंतित हैं; साथ ही समय में सभी इतिहास का अध्ययन। जो लोग अतीत का अध्ययन करते है तिथियों का अर्थ-
BC – (Before Christ) – ई.पू – ईसा के जन्म से पहले
AD – (Anno Domini) – ई. – ईसा मसीह के जन्म के बाद
कृषि का आरंभ – 8000 वर्ष पूर्व
सिंधु सभ्यता के प्रथम नगर – 4700 वर्ष पूर्व
गंगा घाटी के नगर (मगध)- 2500 वर्ष पूर्व
सभ्यता के आरम्भ में
सभ्यताओं के आरम्भ में लोग गुफाओं और कंदराओं में रहते थे। सभ्यता के विकास के साथ लोग समूह में रहने लगे इसके लिए सबसे उपयुक्त जगह नदियों के किनारे होते थे। नर्मदा नदी का पता लगाओ। कई लाख वर्ष पहले से लोग इस नदी के तट पर रह रहे हैं। यहाँ रहने वाले आरंभिक लोगों में से कुछ कुशल संग्राहक थे जो आस-पास के जंगलों की विशाल संपदा से परिचित थे। अपने भोजन के लिए वे जड़ों, फलों तथा जंगल के अन्य उत्पादों का यहीं से संग्रह किया करते थे। वे जानवरों का आखेट (शिकार) भी करते थे। इन सभ्यताओं में सिन्धु घाटी की सभ्यता, बेबीलोन और मेसोपोटामियां की सभ्यताएं प्रसिद्द हैं।
सिंध व सहायक नदी
उपनदी (tributary) या सहायक नदी ऐसे झरने या नदी को बोलते हैं जो जाकर किसी मुख्य नदी में विलय हो जाती है। उपनदियाँ सीधी किसी सागर या झील में जाकर नहीं मिलतीं। कोई भी मुख्य नदी और उसकी उपनदियाँ एक जलसम्भर क्षेत्र बनती हैं जहाँ का पानी उपनदियों के ज़रिए मुख्य नदी में एकत्रित होकर फिर सागर में विलय हो जाता है।
सिंध नदी
सिंध नदी जम्मू और कश्मीर के गांदरबल जिले में स्थित है। यह कश्मीर घाटी की एक महत्वपूर्ण नदी है और झेलम नदी की एक प्रमुख सहायक नदी है। गत्रीबल में सिंध नदी बेहद शांत और सुंदर दिखती है
और यह नदी सुरम्य सिंध घाटी भी बनाती है। हिमालय के ऊबड़-खाबड़ इलाकों से होकर इस नदी का एक अनूठा प्रवाह पथ है। इस नदी का प्रवाह और अधिक तीव्र हो जाता है क्योंकि हिमालय की कई सहायक नदियाँ मुख्य नदी में मिल जाती हैं। सिंध नदी का उपयोग महत्वपूर्ण आर्थिक गतिविधियों के रूप में मछली पकड़ने और सिंचाई के लिए भी किया जाता है। निम्नलिखित खंडों में, सिंध नदी के जल निकासी विवरण, नदी परियोजनाओं और मानवजनित गतिविधियों का विस्तार से वर्णन किया गया है।
4700 वर्ष पूर्व आंरभिक नगर फल, फुले, गंगा व तटवर्ती इलाके में 2500 वर्ष पूर्व नगरों का विकास।
गंगा व सोन नदी – गंगा के दक्षिण में प्रचीन काल में ‘ मगध की स्थापना‘।
सिंध नदी का उपयोग-
इस नदी के पानी का उपयोग सिंचाई और घरेलू उद्देश्यों के लिए भी किया जाता है। विभिन्न नहरों के माध्यम से सिंध नदी के पानी का उपयोग सिंचाई के लिए किया जाता है। इस नदी के पानी को विभिन्न उपचार संयंत्रों में भी उपचारित किया जाता है ताकि यह पीने के लिए भी उपयुक्त हो सके। रंगिल जल उपचार संयंत्र सिंध नदी से कश्मीर घाटी में घरेलू और पीने के उपयोग के लिए पानी के वितरण में महत्वपूर्ण है।
सिंध नदी में नेविगेशन मुख्य रूप से नीचे से गांदरबल शहर तक किया जाता है क्योंकि यहां पानी का बहाव धीमा हो जाता है।
सिंध नदी विभिन्न जलीय प्रजातियों का प्राकृतिक आवास है जैसे- ट्राउट, शुडगर्न, अन्य और विभिन्न अन्य मछलियाँ। वहाँ ट्राउट विभिन्न प्रकार के हैं जैसे- ब्राउन ट्राउट, इंद्रधनुष, बर्फ ट्राउट इस नदी में सबसे आम मछलियां हैं। इसलिए आर्थिक गतिविधि के रूप में मछली पकड़ने के लिए सिंध नदी का उपयोग भी महत्वपूर्ण है।
यात्राएँ
भ्रमण करना मानव के स्वभाव में शुरू से रहा है। हम देखते हैं कि सभ्यताओं का विकास कुछ ही जगहों पर हुआ लेकिन धीरे-धीरे लोग फैलाते गए। यद्यपि प्रारम्भ में आवागमन के साधन नहीं के बराबर थे साथ में पहाड़ियाँ, पर्वत और समुद्र की प्राकृतिक बाधाएं थी। हालांकि लोगों के लिए इन बाधाओं को पार करना आसान नहीं था, जिन्होंने ऐसा चाहा वे ऐसा कर सके, वे पर्वतों की ऊँचाई को छू सके तथा गहरे समुद्रों को पार कर सके। इसके पीची कई कारण थे जिसमें मानव मन की जिज्ञासा, भोजन की तलाश तथा कालांतर में व्यापार की संभावनाएं शामिल हैं।
तिथिया
हमारी सभ्यता अति प्राचीन है यद्यपि सतयुग और त्रेतायुग के प्रमाण उपलब्ध नहीं हैं फिर द्वापर के अंतिम भाग से लेकर अब तक का लिखित तथा भौतिक प्रमाण उपलब्ध है। लेकिन आज तिथियों की गणना विक्रम संवत, ईसवी संवत आदि की जाती है। अगर कोई तुमसे तिथि के विषय में पूछे तो तुम शायद उस दिन की तारीख, माह, वर्ष जैसे कि 2000 या इसी तरह का कोई और वर्ष बताओगे। वर्ष की यह गणना ईसाई धर्म-प्रवर्तक ईसा मसीह के जन्म की तिथि से की जाती है। अत: 2000 वर्ष कहने का तात्पर्य ईसा मसीह के जन्म के 2000 वर्ष के बाद से है। ईसा मसीह के जन्म के पूर्व की सभी तिथियाँ ई.पू. (ईसा से पहले) के रूप में जानी जाती हैं। इस पुस्तक में हम 2000 को अपना आरंभिक बिन्दु मानते हुए वर्तमान से पूर्व की तिथियों का उल्लेख करते हैं।
NCERT SOLUTIONS
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 9)
प्रश्न 1 निम्नलिखित का सुमेल केरो
उत्तर –
प्रश्न 2 पांडुलिपियों तथा अभिलेखों में एक मुख्य अंतर बताओ।
उत्तर – ताड़पत्रों तथा भोजपत्रों पर हाथ से लिखी पुस्तकों को पांडुलिपि कहते हैं। पत्थर तथा धातु जैसे कठोर सतहों पर खुदाई करके लिखे गए लेखों को अभिलेख कहते हैं।
प्रश्न 3 रशीदा के प्रश्न को फिर से पढ़ो। इसके क्या उत्तर हो सकते हैं ?
उत्तर – शीदा जानना चाहती थी कि हम कैसे जान सकते हैं कि सौ साल पहले क्या हुआ था ? रशीदा के प्रश्न का उत्तर देने के लिए हम निम्नलिखित साधनों की मदद ले सकते हैं
(1) इसके बारे में हम प्राचीन ग्रंथों और पुस्तकों को पढ़कर जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
(2) पांडुलिपियों और अभिलेखों से जानकारी हासिल कर सकते हैं।
(3) प्राचीन खंडहरों और स्मारकों से जानकारी प्राप्त कर सकते हैं।
प्रश्न (पृष्ठ संख्या 10)
प्रश्न 4 पुरातत्वविदों द्वारा पाई जाने वाली सभी वस्तुओं की एक सूची बनाओ। इनमें से कौन-कौन सी वस्तुएं पत्थर की बनी हो सकती हैं ? .
उत्तर – पुरातत्वविदों को अतीत की अनेक चीजें; जैसे आभूषण, बर्तन, औजार, हथियार, खंडहर, ईंटे, मूर्तियां, सिक्के तथा दैनिक प्रयोग की अनेक छोटी-छोटी चीजें प्राप्त हुई हैं। इन चीजों में से औज़ार, हथियार, बर्तन, मूर्तियां, खंडहर तथा दैनिक प्रयोग की अनेक छोटी-छोटी चीजें पत्थर की बनी हुई थीं।
प्रश्न 5 साधारण स्त्री तथा पुरुष अपने कार्यों का विवरण क्यों नहीं रखते थे ? इसके बारे में तुम क्या सोचती हो ?
उत्तर – प्राचीन काल में जहां शासक वर्ग के लोग अपनी विजयों तथा महान कार्यों को एक यादगार के रूप में चट्टानों और लौह स्तंभों पर लिखवा देते थे वहीं साधारण स्त्री-पुरुष अपने कार्यों का कोई ब्योरा नहीं रखते थे। उस काल में उन लोगों का जीवन बहुत ही कष्टकारी था। उन्हें केवल अपना पेट भरने के लिए भोजन की ही चिंता लगी रहती थी।
इसलिए उन लोगों ने कभी इसका विवरण रखने की आवश्यकता महसूस नहीं की।
प्रश्न 6 कम-से-कम दो ऐसी बातों का उल्लेख करो जिनसे तुम्हारे अनुसार राजाओं और किसानों के जीवन में भिन्नता का पता चलता है ?
उत्तर – (1) राजा लोग ऐशो-आराम का जीवन जीते थे तथा बड़ी शान से महलों में रहते थे जबकि किसान खेतों में कठोर परिश्रम करके अपने परिवार का भरण-पोषण करता था।
(2) राजा लड़ाई में अपनी सेना का नेतृत्व करता था जबकि किसान पशुपालन और खेती का काम करता था।